
जिधर जिधर हो मां
काली का विचरण
रणचंडी का भयावह
लगे प्रंचड चित्रण
नरमुंडों की माला,,
तन पे मृगछाला
उतरी जब रण में
मां स्वरुपा विकराला
दैत्यों के अस्त्र शस्त्र
पाश मुदगर भाला
चबा रही पीस रही थी
चमकती दंत से
कोप की देवी मां
को सदा नमन
रक्तबीज नामक राक्षस
था अति अभिमानी
जिसके रक्त बुंद से
असंख्य दैत्यो की जिनगानी
उसके भेद को मां ने जाना
अंतहीन का अंत हुआ
विख्यात जग में हुई भवानी
मां की दृष्टि से बचे न अधर्मी
समाप्त हुई रण में विपत्ति
जयकारा लगाएं जय मां कालरात्रि
मां की आराधना से मिले शक्ति
मां का हृदय सदा उपकार से शोभित
जय मां दया क्षमा और करुणानिधि
🌺🪔 सप्तम स्वरुपा मां कालरात्रि दुष्ट विनाशिनी नमो-नमो 🌺 जय माता दी 🌺 शुभ प्रभात 🌅 नागेश्वर
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